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समरारासु
पासत्थे पुण खुट्टि खित्ति खाइव सहु हारिउ । संजम ए सुभखित्ति सव्व वावीय वडारिउ । त्रिभेदि जीव ते करसणी राजदंड अप्परं दहइ । सुविहियमुणि रायपसायवसि मुख सुगालि लच्छी लहइ ॥ ८० ॥ इणिपरि सिरिउवएसमालकहाणया । तवसंजमसंतोसविणयविज्जाइ पहणय | सावयसंभरणत्थ अत्थपय छप्पय छंदिहिं । रयणसींहसूरीससीस पभणइ आनंदिहिं ।
अरिहंतआण अणुदिण उदय धम्ममूल मत्थइ हउं । भो भविय भत्तिसत्तिहिं सहल सयल लच्छिलीला लहउ ॥ ८१ ॥ ॥ इति श्री उपदेशमालासर्वकथानकछप्पया ॥
समरारासु
पहिल पणमित्र देव आदीसरु सेतुजसिहरे । अनु अरिहंत सव्वे वि आराहउं बहुभत्तिभरे ॥ १ ॥ तर सरसति सुमरेवि सारयससहरनिम्मलीय । जसु पयकमलपसाय मृरुषु माणइ मन रलिय ॥ २ ॥ संघपतिदेसलपुत्र भणिसु चरिउ समरातणउ ए । धम्मय रोलु निवारि निसुणउ श्रवणि सुहावणउ ए ॥ ३ ॥ भरह सगर दुइ भूप चक्रवति त हूअ अतुलबल । पंडव पुहविप्रचंड तीरथु उधरइ अतिसबल ॥ ४ ॥ जावडars संजोगु हूअडं सु दूसम तव उदए । समइ भरइ सोइ मंत्रि बाहडदेउ ऊपजए ॥ ५ ॥ हिव पुण नवी य ज वात जिणि दीहाडइ दोहिलए । खत्तिय खग्गु न लिंति साहसियह साहसु गलए ॥ ६ ॥ तिणि दिणि दिनु दिरकाउ समरसीहि जिणधम्मवणि । तसु गुण करडं उद्योउ जिम अंधारइ फटिकमणि ॥ ७ ॥ सारणि अमितणीय जिणि वहावी मरुमंडलिहिं । किउ कृतजुगअवतारु कलिजुग जीतउ बाहुबले ॥ ८ ॥
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