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प्राचीनगूर्जर काव्यसङ्ग्रहः
सेणियप्रति चिर जीव अभयप्रति जा चड बिहुपरि । कालसूरप्रति कहइ म मरि म म जीविय अणुसरि । महेसर पुच्छइ ए कवणु कवण एस परमत्थ पुण । जिण भइ विप्पसेडुयचरिय चिह्न प्रकारि नरआचरण ॥ ७५ ॥ वरि अंगमीइ मरण सरण जिणधम्म धरिज्जइ । जियहिंसा पुण घोर घोरदुहहेउ न किज्जइ । कालसूरियह पुत्त सुलस जिम पाव निवारउ । परपीडा परिहरह तरह संसार असार । कुलकारण किंपि म लिकवउ गुणह रूप गुरुयडि धरउ ।
परलोग मग्ग जाणउं सुपरि कुपरि कुकम्म म आयरउ ॥ ७६ ॥ हेजि हित अरिहंत कह वि नवि प्राणि करावइ । तं पुण दिइ उपदेस जेण किडाइ सुख आवइ ।
जं सुरवइ सुरवग्गि सग्गि एरावणवाहण । जं भरहाहिव रज्जसज्ज भुंजइ सुहसाहण | जं जं अवर वि सुरअसुरनरमुरक सुरक माणइ घणउ । तिहुयणह मज्झि तं सयल फल जिणवरउवएसहतणउं ॥ ७७ ॥ खत्तियकुंडि जमालि वीरजामाइ खत्तिउ । सुदंसणभत्तार सार वयभारपवतिउ । नविन्न किज्जत किड इय आगमवाणी । निन्हवि तेण कुदिट्ठि दुट्ठि किय बहु गुणहाणी । नियकित्ति मुसिय सुर किव्विसिय मिलिड मिच्छमह मोहियउ । सयपंच साहु साहुणि सहस ढंकसड्डि पुण बोहियउ ॥ ७८ ॥ जिम मासाहस पंखि मुखिहिं मा साहस जंपई । araarणि पइसेवि मंस लिंतउ नवि कंपइ | तिम अवरह उवएस दिति किवि फुडवयणरकरि । पणि अप्पणि न करंति रम्म जिणधम्म तणीपरि । वेरग्गवाणि नड उच्चरइ जलहि जालि पाणी गलइ । इम कम्मभारि भारिय भणी जाइ भूर भवजलतलइ ॥ ७९ ॥ धम्मीय जिणराइ आणि दीवंतर दिडउ | अविरति सयल वि खड देसविरते अघ खडउ ।
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