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प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः ताल तिविल तरविरियां वाजई ठामि ठामि थाकणा करीजई
पगि पगि पाउल पेषण ए॥३॥ माणुस माणुसि हियउं दलिजइ घोडे वाहिणिगाहु करीजइ
हयगय सूझइ नवि जणह । दरिसणसउं देवालउ चल्लइ जिणसासणु जगि रंगिहिं मल्हइ
जगतिहिं आव्या सिवभुवणि ॥४॥ देवसोमेसरदरिसणु करेवी कवडिबारिजलनिहिं जोएवी
प्रियमेलइ संघु ऊतरिउ । पहुचंदप्पहपय पणमेवी कुसुमकरंडे पूज रएवी जिणभुवणे
उच्छवु कियउ ॥५॥ सिवदेउलि महाधज दीधी सेले पंचे वन्नसमिद्धी अपूरवु उच्छवु
कारविउ। जिनवरधरमि प्रभावन कीधी जयतपताका रवितलि बडी दीनु
पयाणउं दीवभणी। कोडिनारिनिवासणदेवी अंबिक अंबारामि नमेवी दीवि
वेलाउलि आवियउ ए॥६॥ एकादशी भाषा-संघु रयणायरतीरि गहगहए गुहिरगंभीरगुणि ।
आविउ दीवनरिंदु सामुहउ ए संघपतिसबदु सुणि ॥१॥ हरषिउ हरपालु चीति पहुतउ ए संघु मोलविकरे । पभणइं दीवह नारि संघह ए जोअण ऊतावली ए। आउलां वाहिन वाहि वेगुलइ ए चलावि प्रिय बेडुली ए ॥२॥ किसउ सुपुन्नपुरिषु जोइउ ए नयणुलां सफल करउ । निवछणा नेत्रि करेसु ऊतारिसू ए कपूरि ऊआरणा ए। बेडीय बेडीय जोडि बलियऊ ए कीधउं बंधियारो ॥ ३ ॥ लेउ देवालउमाहि बइठउ ए संघपति संघसहिउ । लहरि लागई आगासि प्रवहणु ए जाइ विमान जिम । जलवटनाटकु जोइ नवरंग ए रास लउडारस ए॥४॥ निरुपमु होइ प्रवेसु दीसई ए रुवडला धवलहर । तिहां अच्छइ कुमरविहारु रुअडऊ ए रुअड्डला जिणभुवण । तीर्थकर तीह वंदेवि वंदिऊ ए सयंभू आदिजिणु ।
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