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अथ दिनचर्यायां प्रथमोल्लास: : 25 जिसको कफ, वात, पित्त का प्रकोप नहीं हुआ हो, जिसे किसी भी प्रकार की व्याधि न हो और जिसने अपनी समस्त इन्द्रियों को वश कर रखा हो, उसी के आए हुए शुभ या अशुभ स्वप्न सत्य सिद्ध होते हैं। स्वप्रभेदाह
अनुभूतः श्रुतोदृष्टः प्रकृतेश्च विकारजः। स्वभावतः समुद्भुतश्चिन्तासन्ततिसम्भवः ।। 16॥ देवताधुपदेशोत्थो धर्मकर्मप्रभावजः। पापोद्रेकसमुत्थश्च स्वप्रः स्यात्रवधानृणाम्॥17॥
स्वप्न नौ तरह से होते हैं-1 अनुभूत बात मन में रहने से, 2. श्रवण की गई बात से, 3. प्रत्यक्ष दर्शन चित्त में रहने से, 4. अजीर्णादि विकार से, 5. स्वभाव से, 6. अनवरत चिन्ता से, 7. देवतादि के उपदेश से, 8. धर्मानुष्ठान के प्रभाव से और 9. पाप कर्म की अतिशय वृद्धि होने से स्वप्र होते हैं।
प्रकौररादिमैः षड्भिरशुभश्च शुभोऽपि च। दृष्टो निरर्थकः स्वप्रः सत्यश्च त्रिभिरुत्तरैः॥18॥
पूर्वोक्त प्रकारों में से पहले छह कारणों से देखे गए शुभ अथवा अशुभ स्वप्न निरर्थक हैं अर्थात् शुभ हो तो उनका शुभ फल नहीं और अशुभ भी हो तो उनका अशुभ फल नहीं होता किन्तु अन्तिम तीनों कारणों से अर्थात् देवोपदेश से, धर्मकृत्य के प्रभाव और पाप की अभिवृद्धि से देखे गए शुभ अथवा अशुभ स्वप्र सत्य सिद्ध होते हैं। स्वप्रफलपाकावधिः
रात्रेश्चतुर्षु यामेषु दृष्टः स्वप्रः फलप्रदः। मासैदशभिः षड्भिस्त्रिभिरेकेन च क्रमात्॥19॥ निशान्त्यघटिकायुग्मे दशाहात्फलति ध्रुवम्। दृष्टः सूर्योदये स्वतः सद्यः फलति निश्चितम्॥20॥ अब स्वप्रदर्शन एवं स्वप्न के फल कब प्रकट होते हैं, इस विषय में कहा है
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* केशवदैवज्ञ का मत है कि किसी प्रकार की चिन्ता के व्याप्त रहते आने वाले स्वप्न, बीमारी के दौरान होने वाले स्वप्न, अल्पावधि एवं दीर्घावधि के स्वप्न फलवान नहीं होते हैं। त्रिदोष-व्याधिजन्य स्वप्नों में, वात व्याधि होने पर व्यक्ति को साहसिक कार्यों से जुड़े स्वप्न होते हैं। पित्त व्याधि होने पर ग्रहनक्षत्रादि से जुड़े सपने आते हैं। आग के दर्शन को त्यागकर अन्य पिङ्गल एवं रक्तवर्णीय द्रव्यादि स्वप्र में दिखाई दें तो भी पित्त व्याधि का ही परिणाम जानना चाहिए। इसी प्रकार यदि कफ विषयक व्याधि होगी तो जलस्रोतों से सम्बन्धित स्वप्न आने लगते हैं-चिन्तारुग्जाल्पदीर्घ विफलमनिलत: साहसोड्डीनपूर्व पित्तात्तेजोग्निपीतारुणमपि कफतोम्ब्वाशयादीनि पश्येत्॥ (मुहूर्ततत्त्वं 17, 3)