________________ | आवश्यक सूत्र : महनीय आगम | विशेषावश्यक भाष्य की रचना आवश्यक सूत्र के प्रथम अध्ययन (सामायिक) पर व्याख्या रूप में की गई है। अतः इस आवश्यक सूत्र का भी परिचयात्मक विवरण देना यहां प्रासंगिक प्रतीत होता है। आवश्यक सूत्र को अंगबाह्य आगमों में अतिविशिष्ट स्थान दिया गया है (द्र. नन्दीसूत्र)। विशेषावश्यक भाष्य (गा. 550 तथा वृत्ति) के अनुसार गणधरों द्वारा न पूछने पर; तीर्थंकर द्वारा 'मुक्तव्याकरण' (उन्मुक्त कथन) रूप से जो निष्पन्न- अभिव्यक्त होता है, अथवा जो स्थविर आचार्यों द्वारा रचित होता है, वह अंगबाह्य' आगम होता है। अतः अंगबाह्य रचना के अन्तर्गत वे सभी रचनाएं समाविष्ट की गई हैं जो अत्यन्त प्रकृष्ट मति आदि वाले श्रुतकेवली या अन्य विशिष्ट ज्ञानी आचार्यों द्वारा काल, संहनन, आयु की दृष्टि से अल्प योग्यता वाले शिष्यों पर अनुग्रह करते हुए लिखी गई हैं। सूत्रः गागर में सागर / 'आवश्यक' आगम को 'सुत्त' कहा जाता है। सुत्त के संस्कृत रूप सूक्त व सूत्र- दोनों होते हैं। सूक्त' यानी श्रेष्ठ कथन (सुष्ठ उक्तम्)। भगवान् महावीर आदि तीर्थंकरों द्वारा भव्य जनों के कल्याण हेतु जो श्रेष्ठ कथन (अर्थात्मक) हुए, वे गणनरों के माध्यम से शब्दात्मक रूप धारण कर 'सूक्त' कहलाए। 'सूत्र' से तात्पर्य हैसंक्षेप में अर्थ-कथन। सूत्र की आगमोक्त परिभाषा यह है अप्पग्गंथमहत्थं बत्तीसादोसविरहियं जं च। लक्खणजुत्तं सुत्तं अठहि य गुणेहिं उववेयं / ' अर्थात् जो अल्प अक्षरों में निबद्ध हो, महान् अर्थ का सूचक हो, (बत्तीस) दोषों से रहित हो तथा (आठ) गुणों से सम्पन्न हो, वही 'सूत्र' कहलाता है। इसी भाव को एक संस्कृत पद्य में इस प्रकार व्यक्त किया गया है : अल्पाक्षरमसंदिग्धं सारवद् विश्वतो मुखम्। अस्तोभमनवद्यं च सूत्रं सूत्रविदो विदुः॥ 1. वारत्रयं गणधरपृष्टस्य तीर्थकरस्यय आदेशः प्रतिवचनम्- उत्पादव्ययधौव्यवाचकं पदत्रयमित्यर्थः, तस्माद्यनिष्पन्नं तद् अङ्गप्रविष्टं द्वादशाङ्गमेव, मुत्कं मुत्कलम्- अप्रश्नपूर्वकं च यद्व्याकरणम्-अर्थप्रतिपादनम्, तस्माद् निष्पन्नम् अङ्गबाह्यम् अभिधीयते, तच्च आवश्यक-आदिकम्। 2. तत्त्वार्थभाष्य-1/20, सर्वार्थसिद्धि-1/20, 3. बृहत्कल्प भाष्य- गाथा 277, तथा विशेषावश्यक भाष्य, गाथा-999, 4. अलीक, उपघातजनक, निरर्थक आदि 32 दोषों हेतु द्रष्टव्यः विशेषाः भाष्य गा. 999 पर शिष्यहिता बृहवृत्ति, 5. आ. हेमचंद्र कृत प्रमाणमीमांसा में उद्धृत 1/2/4 सूत्र पर। R@@@@@@RB0BR [29] R@@CROBAROBAROOR