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क्रं विषय - ६६. सांभोगिक व्यवहार हेतु अन्य गण में जाने का विधान ६७. वाचनाप्रदायक गुरु के रूप में अन्य गण में जाने का विधि-निषेध ६८. काल धर्म प्राप्त भिक्षु के शरीर को परठने की विधि ६९. कलहकारी भिक्षु के संदर्भ में विधि-निषेध ७०. परिहार तप में अवस्थित भिक्षु का वैयावृत्य विधान ७१. महानदी पार करने की मर्यादा ७२. घास-फूस से आवृत छत वाले स्थान में प्रवास का विधान .. पंचमो उद्देसओ - पञ्चम उद्देशक ७३. विकुर्वणाप्रसूत विपरीत लिङ्गीय दिव्य शरीर संस्पर्श का प्रायश्चित्त ७४. कलहोपरान्त आगत भिक्षु के प्रति कर्त्तव्यशीलता. ७५. सूर्योदय से पहले एवं सूर्यास्त के पश्चात्त आहारग्रहण विषयक प्रायश्चित्त ७६. वमन विषयक प्रायश्चित्त ७७. सचित्त समायुक्त आहार के अशन एवं परिष्ठापन का विधान ७८. परिपतित सचित्त जलबिन्दुमय आहार का ग्रहण विधान ७९. पशु-पक्षी के संस्पर्श से अनुभूत मैथुनभाव का प्रायश्चित्त ८०. साध्वी को एकाकी गमन का निषेध ८१. साध्वी को वस्त्र-पात्र रहित होने का निषेध ८२. साध्वी के लिए आसनादि का निषेध ८३. साध्वियों के लिए आकुंचनपट्टक धारण का निषेध ८४. सहारे के साथ बैठने का विधि-निषेध ८५. शृंगयुक्त पीठ आदि के उपयोग का विधि-निषेध ८६. सवृन्त तुम्बिका रखने का विधि-मिषेध ८७. सवृन्त पात्रकेशरिका रखने का विधि-निषेध ८८. दण्डयुक्त पादप्रोञ्छन का विधि-निषेध ८९. मूत्र के आदान-प्रदान का निषेध ९०. पर्युषित आहार-औषध आदि रखने की मर्यादा ९१. परिहारकल्पस्थित भिक्षु द्वारा दोष सेवन का प्रायश्चित्तं ९२. पुलाकभक्त ग्रहीत होने पर पुनः भिक्षार्थ जाने का विधि-निषेध
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