________________
( ३० )
टिप्पणी में लिखे हो और लेखकों की गलती से वे मूल ग्रन्थ में सामिल हो गये हैं। ? प्राय: इस ग्रन्थ की कोई कोई प्रतियों में विभिन्नता भी देखी जाती हैं। कितने ही श्लोक ऐसे हैं जो मुद्रित मराठी पुस्तक में नहीं हैं और वे दूसरी प्रतियों में हैं । इसी तरह संभव है कि कोई ऐसी प्रति भी हो जिसमें ये श्लोक न भी हों। कदाचित् हो भी तो अपेक्षावश दोषाधायक नहीं हैं ।
पृष्ठ ५३ में श्लोक नं० १७:---
भावार्थ - इस श्लोक का तात्पर्य सिर्फ वस्त्र परिधारणके अनंतर शरीरको न पोंछनेका है । अतएव साधारण जनताको इस युक्ति द्वारा न पोंछनेका उपदेश -मात्र दिया है । अथवा श्लोक नं० १७-१८-१९ उद्धृत जान पड़ते हैं । अथवा प्रकरणानुसार या तो क्षेपक रूपसे किसीने मिला दिये हों या टिप्पणीमेंसे मूलमें शामिल हो गये हों । संभव है ऐसा ही हुआ हो। क्योंकि प्रायः देखा गया है कि टिप्पणीका पाठ भी लेखकों की गलतियोंसे मूलमें आ जाता है । अस्तु, कुछ भी हो इन श्लोकों का सिर्फ तात्पर्यार्थ ही ग्रहण करना चाहिए। तात्पर्यार्थ इतना ही है कि स्नान कर वस्त्र पहन लेने के बाद शरीरको न पोंछे ।
पृष्ठ ५५ में श्लोक नं० २६:
नीले रंगका कपड़ा दूरसे ही त्यागने योग्य है अर्थात् श्रावकों को नीले रंगसे रंगा हुआ कपड़ा कभी नहीं पहनना चाहिए । परंतु सोते समय रतिकर्ममें स्त्रियां यदि नीला वस्त्र पहने तो दोष नहीं है ।
पृष्ठ ५७ में श्लोक नं० ५७:
सूखी हुई लकड़ी पर कपड़ा सुखा देने पर दो वार आचमन करनेसे शुद्ध होता है | अतः पूर्व दिशामें या उत्तर दिशा में धोया हुआ वस्त्र सुखावे ।
पृष्ठ ७२ में श्लोक नं० ११३, ११४:--
अपनेको जैसा अवकाश हो उसके अनुसार पंचनमस्कार मंत्र के एक्सौ आठ या चौपन या सत्तावीस जाप देवे | पंचनमस्कार मंत्र के दो दो और एक पदपर विश्राम लेते हुए नौ बार जपने पर सत्ताईस उच्च्छास होते हैं । भावार्थ - “अर्हद्वयो नमः सिद्धेभ्यो नमः” इन दो पदोंको बोलकर थोड़ा विश्रामं ले, फिर " आचार्येभ्यो नमः उपाध्यायेभ्यो नमः” इन दो पदका बोलकर थोड़ा विश्राम ले, बाद “साधुभ्यो नमः” इस एक पदको बोलकर विश्राम लेवे । एवं एक पंचनमस्कार मंत्रमें तीन उच्च्छास, और नौ पंचनमस्कारों में सत्ताईस उच्छ्रास होते हैं । इस विधिके अनुसार पंचनमस्कार मंत्र के उपर्युक्त जाप देनेपर सम्पूर्ण पाप नष्ट हो जाते हैं ।
पृष्ठ १०३ में श्लोक नं० १०९-११०:-- पहलेके ब्रह्मभागोंको छोड़कर आगेवाले ब्रह्मभागों की पूर्वदिशावर्ती मानुषभाग और देवभागोंमें तीन कुंड बनवावे । उन तीनों कुंडों के बीचमें एक अरत्निप्रमाण लंबा, इतना ही चौड़ा और इतना ही गहरा चौकोन - जिसके चारों ओर तीन मेखला ( कटनी ) खिंची हुई हों ऐसा एक. कुंड बनवावे ।
- अनुवादक ।
•