Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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भी अरिष्टनेमिका उल्लेख आया है। इन्हें यज्ञमें विघ्न निवारणके हेतु बाहूतकिया गया है ।
टोडरमलजीने प्रभास पुराणका उद्धरण देते हुए बताया है कि वामनको पद्मासन दिगम्बर नेमिनाथका दर्शन हुआ था । उसीका नाम शिव है । उसके दर्शनादिकसे कोटि यज्ञ फल प्राप्त होता है। लिखा है---
भवस्य पश्चिमे भागे वामनेन तपः कृतम् । तेनैव तपसाकृष्टः शिवः प्रत्यक्षतां गतः ॥ पद्मासनमासीनः श्याममतिदिगम्बर: 1 नेमिनाथ: शिवेत्येवं नाम चक्रेऽस्य वामनः ॥ कलिकाले महाघोरे सर्वपापप्रणाशकः 1 दर्शनात्स्पर्शनादेव कोटियज्ञफलप्रदः ।।
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रेवतात्री जिनो नेमिर्युगादिनिमलाचले | ऋषीणामाश्रमादेव मुक्तिमार्गस्य कारणम् ।।
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यहाँ नेमिनाथ की 'जिन' संज्ञा बतलायी है और उनके स्थानको ऋषिका आश्रम, मुक्तिका कारण कहा है। इससे नेमिनाथकी पूज्यता स्पष्ट है । तीर्थंकर पार्श्वनाथ
२३वें तीर्थंकर पार्श्वनाथका जन्म बनारसके राजा अश्वसेन और उनकी रानी वामदेव से हुआ था । इन्होंने ३० वर्ष की अवस्थामें गृह त्यागकर सम्मेदशिखर पर्वत पर तपस्या की। यह पर्वत आज तक पार्श्वनाथ पर्वतके नामसे प्रसिद्ध है। पार्श्वनाथने केवलज्ञान प्राप्तकर ७० वर्षों तक श्रमण - धर्मका प्रचार किया । पार्श्वनाथके जीवन प्रसंग में कमठका महत्त्वपूर्ण स्थान है । इसीके कारण पार्श्वनाथको साधनामें निखार और परिष्कार आया है। क्षमा और बेर के घात-प्रतिघातका मार्मिक वर्णन हुआ है । पार्श्वनाथ क्षमाके प्रतीक है और कमठ वैर का । क्षमा और वेरका द्वन्द्व अनेक जन्मों तक चला है और अन्तमें वैरपर क्षमाकी विजय हुई है।
जैन पुराणोंके अनुसार पार्श्वनाथका निर्वाण तीर्थंकर महावीरके निर्वाणसे २५० वर्ष पूर्व अर्थात् ई० पू० ५२७ + २५० = ७७७ ई० पू० में हुआ । पार्श्वनाथ१. मोक्षमार्गप्रकाशक -- आचार्यकल्प पं० श्रीटोडरमलग्रंथमाला, गांधीरोड, बापू नगर, प्लाट न० ए० ४, जयपुर, वि० सं० २०२३, १०१४१.
तीर्थंकर महावीर और उनको देशना १७