Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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वाङ्मयसे सिद्ध है। डॉ० एन० एन० बसुका मत है कि लेखनकलाका प्रथम आविष्कार कदाचित् ऋषभदेवने किया था। प्रतीत होता है कि ब्रह्मविद्याके प्रचारके लिये उन्होंने ब्राह्मी लिपिका आविष्कार किया था। यही कारण है कि वे अष्टम अबतारके रूपमें प्रसिद्ध हुए हैं। तीर्थकर नमि ___ अनासक्ति योग के प्रतीक २१ व सार्थक र नामनाथ है । ऋषभनाथके अनन्तर नमिनाथका जीवनवृत्त जैनेतर साहित्य में उपलब्ध होता है | नमि मिथिलाके राजा थे और इन्हें हिन्दू पुराणोंम जनकके पूर्वजके रूपमें माना गया है। नमिकी अनासक्तवृत्ति इतनी प्रसिद्ध थी, जिससे उनका वंश ही विदेह कहलाता था। अहिंसाका प्रचार नमिक युगमें विशेष म्पसे हुआ था | उत्तराध्ययनमुत्रके नवम अध्ययन में नमि-प्रव्रज्याका सुन्दर वर्णन उपलब्ध होता है। इस प्रव्रज्यामें आये हुए बचनोंकी तुलना पालि जातक और महाभारतके कई अंगोम को जा सकती है। यहाँ उदाहरणार्थ कुछ पा उद्धृत किये जाते हैं-
"मुह बमामो जीवामो जेसि मो णस्थि किंचण | मिहिलाए इज्झमाणीए का मे झन किंचण ।।"
-उन्न० २.-१४. मसुखं बत जीवाम येमं नो नन्थि किंचनं । मिथिलाये दहमानाय न मे किचि अदयहथ ।।"
___-पालि-महाजनक-जातक. "मिथिलायां प्रदीप्तायां न मे किञ्चन दह्यते ।"
-म० भा० शांतिपर्व. तीर्थकर नमिकी अनासक्तवृत्ति मिथिलामें जनक तक पायी जाती है । कहा जाता है कि अहिंसात्मक प्रवृत्तिके कारण ही उनका धनुष प्रत्यशाहीन रूपमें उनके क्षत्रियत्वका प्रतीकमात्र रह गया था। रामने शिवनगांडीवको फिर प्रत्यञ्चायुक्त किया। सीता-स्वयंवरके अवसरपर रामने इसी प्रत्यञ्चाहोन धनुषको तोड़कर धनुषपर पुनः प्रत्यञ्चाको परम्परा प्रचलित की । वस्तुतः अहिंसामें ही शौर्य और पराक्रमकी वृप्ति निहित है । नमि तीर्थकर ईस्वी सन्से सहस्रों वर्ष पूर्व हुए हैं। तीर्थकर नेमिनाथ
२रखें तीर्थक र नेमिनाथका वर्णन जैन ग्रन्थोंके साथ ऋग्वेद, महाभारत १. हिन्दी विश्वकोश, जिल्द १, पृ० ६४ तथा जिन्६ ३, पृ० ४४४.
तीर्थकर महावीर और उनकी देशना : १५