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तीर्थहर भगवान महावीर प्रकट करता है कि मां भारती के हिन्दी कोर्ष में एक अमूल्य कृति में वृद्धि हो गई है।" काव्य मर्मज्ञ श्री पं० पन्नालाल जी, साहित्याचार्य
सागरः"तीर्थकर भगवान महावीर' पुस्तक मिली। सुन्दर रचना है, भाव और भाषा दोनों ही हृदय में घर करते हैं । मापके इस कार्य से साहित्य को श्री वृद्धि हुई है।" (पत्र १५ अगस्तं १५६०)
श्री पं० वंशीधर जी सा०, चौमू (जयपुर):
'तीर्थकर भगवान महावीर' पुस्तक की काव्य रचना बहुत सुन्दर बन गई है। इस पुस्तक का केवल 'महावीर' नाम ही रखते तो अच्छा था। बन परीक्षालयो के पाठयक्रम में इसको रखवाएं सम्मेलन की हिंदी परीक्षामों में अगर पुस्तक अथवा उसका मश भी रखा जाय तो ठीक रहेगा । पापको भावो रचनाएं अधिक प्रौढ, भावपूर्ण हों एवं पाप समाज के सुकवियों मे प्रमुख स्थान प्राप्त करें यही मंगल कामना है।
(पत्र ता० २९-१०-५६) भीमान् बबरीप्रसाद साकरिया, सम्पादक राजस्थान:
भारती' (बीकानेर) मानन्दः
प्रथम प्रयास होने पर भी प्रापका यह काव्य बग सुन्दर निर्माण हया है। हमें तो यह पता नहीं था कि प्राप इतने जबरदस्त कवि भी है। पुस्तकं वोई के योग्य है।"
(पत्र ता० १८-२-२६) Shiti Digambar Das Jain, Author of 'Shanti Ke Agraduta Bhagawan Máhavira,' Shiaħåránpur , . -*** Not to face, but from the varique article of VOA, & A. V. şhri, Virendra got 4 sacred place my heart and as such I know him perfectly well: Hie hande