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तीर्थङ्कर भगवान महावीर सखियां भी अपने साथ साथ वे लाई। मानों अप्सरियां स्वयम शची संग आई।
वे आई या आए लक्षण सब श्री के।
सब खड़े हो गए मान हेतु रानी के ॥ राजा ने भी कर दिया रिक्त अर्धासन । सब बैठे अब हो रही समा अति शोभन ॥
सिंहासन पर राजा-रानी यों लगते ।
साकार न्याय-सुषमा हो कर ज्यों सजते ॥ चल रहा किंतु विरुदावलि का अविरल क्रम । सुन रहे सभी हो मन्त्र मुग्ध जिसमें रम ।
पर शांति हुई जब हुआ अन्त गायन का।
चल दिया कार्यक्रम जो निश्चित प्रतिदिन । नव नियत कार्यक्रम अन्त हुआ नप बोले। सम्राज्ञी से उत्सुक अमृत रस घोले ॥
'हे शुभे ! स्वप्न देखे क्या क्या हैं तुमने ।
वतलाओ जो हैं सुने नहीं हम सबने । सम्रागी बोली “पिछले प्रहर रात्रि में।' देखे मैंने सपने कुछ सुख निद्रा में ॥
इनके आशय के ज्ञान हेतु उत्सुक मैं ।'
जागी उत्कण्ठा स्वप्न-ज्ञान की सब में॥ मन्त्री बोले श्रीमान् हमारे नपवर । बतलाएंगे स्वप्नार्थ कहें राज्ञीवर ॥