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तीर्थङ्कर भगवान महावीर
लोरी को सुनते-सुनते, वे सो जाया हैं करते । तो मात-पिता कुछ चर्चा,
उन पर ही करते सोते ॥ रजनी में सोते-सोते जब वे हैं जाग बैठते । तो घण्टों जगमग-जगमग, हैं दीप जोहते रहते ॥
शुभ जगर-मगर दीपक संग, उनकी यह क्रीड़ा मनहर । देखा करते हैं नप भी,
अपनी निद्रा को खोकर ॥ उनका प्रसन्न चित रहता. रोते न कभी हैं दिखते । क्या इसी लिए उन पर हैं, निशिदिन दुलार सब करते ॥
शुभ प्रातकाल नर-नारी उनका मुख लखने आते । कहते वे इससे उनके,
सब कार्य सिद्ध हो जाते॥ मङ्गलमय मङ्गलकारक, शिशु का मञ्जुल मधुरानन ।