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देवता भव रुद्र ने अति दैत्यगण विकराल । ये रचे निज शक्ति माया से कुडौल विशाल ।।
कष्ट जिनसे दे अमित ही हो न पाया तुर।
निघाइता हामी दिखायो मारने को वृष्ट ।। पर न इससे वीर अस्थिर शाम हुन गम्भीर । पारम-दृढ़ता में जड़े से व्यर्थ दु:ख समीर ॥