Book Title: Tirthankar Bhagwan Mahavira
Author(s): Virendra Prasad Jain
Publisher: Akhil Vishwa Jain Mission

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Page 205
________________ लोकोद्धार विहार बोर कर, : निष्कांक्षित पहुंचे पावा पर। धर्म-धाम-सा जो संस्थित है, प्राची में भारत-वसुधा पर ॥ प्रकृति-गोद में श्री समृद्धि-सा, विहंस रहा इसका कण-कण है। और वीर वर शुभागमन से, अमय हुआ सारा प्रांगण है ॥ सुन शुभ वीरागमन मुदित मन, ' व्यक्ति छन्द स्वागत हित गाते । सँग पावा नप हस्तिपाल मी, दर्शन पूजन कर सुख पाते ॥ मन्तिम जिन उपदेश प्राज सुन, सबने अपना भाग्य सराहा । ले सद्वत श्री वोर चरण में, भव्यों ने प्रात्मिक हित चाहा ॥

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