Book Title: Tirthankar Bhagwan Mahavira
Author(s): Virendra Prasad Jain
Publisher: Akhil Vishwa Jain Mission

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Page 209
________________ अष्टम् सर्ग : निर्वाण एवं वन्दना झूमते भक्ति में बोल रहे श्री महावीर स्वामी को जय ॥ जय जय जिनवर, जय जय जिनेन्द्र, जय जय जगत्राता जगन्नाथ । जय परमात्मा पावन प्रकाम, जय उच्चारित उत्साह साथ ॥ प्रतिध्वनित हुमा भू-नम मण्डल, 'जय जय' ध्वनि की लहरें चञ्चल । पर सन्मति विभु ने सच पाया, विर सौख्य स्थान प्रक्षय अविचल । देवों ने रत्न विकीर्ण किए, झिलमिल झिल मिल जगमग-जगमग । पालोकमयो अब भूमि-गगन, उपदेश वोर का ज्योतिर्मग ॥ यह मङ्गलमय मङ्गल का दिन, हो गया माङ्गलिक पर्व पूत । __ सन्मति-सन्देश लिए बहता, उन्मुक्त समीरण शान्ति-दूत । प्राची में छाई परणाई, क्या प्रात्म-ज्योति का ही दर्शन ? क्या सूरज के मिस मुक्त वीर, के ज्ञान-पुञ्ज-रवि का उवयन ?

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