Book Title: Tirthankar Bhagwan Mahavira
Author(s): Virendra Prasad Jain
Publisher: Akhil Vishwa Jain Mission

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Page 187
________________ ROM NAIN CH ARH AKA जगोपकार हित रचा इन्द्र ने उपदेशालय । समवशरगा यह मिलो मभी को गरगा माम्य मय ।। xxx xxx xxx जिसके चारों ओर मभा-गृह बारह दिखते । जिसमें बैठ धर्म-ध्वनि मुन भवि भव-भय हरते ।। चार मभायें माघु प्रायिका पशु मानव को। शेष कल्प भुव म्यन्तर ज्योतिष देविदेव की । xxx xxx xxx नबन कली मी भनी बनी स्म गन्धकुटी पर । प्रत्यक्ष विभु वान विगांजे विमा विभव तर॥ शिर पर गाभिन तीन छत्र अदभूत हवि वाम । मगते है सर्वज्ञ सर्व-दशींश निराले ॥

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