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चतुर्थ सर्ग : किशोर वय पाशीर्वाद तब भूपति ने,
अति हर्षित होकर उन्हें दिया । बोले वे त्रिशला से, जानासन्मति ने वह गज मतवाला । वश कर न सके जिसको योद्धा,
दृढ़ फीलवान, वश कर डाला। हम मंत्रि. प्रवर थे सोच रहे, कसे वश में गज किया जाय। पर साधन हो सब विफल रहे,
कोई न सूझता था उपाय ॥' 'श्रीमन् कैसे हैं नृपति कि जो, गज एक मत वश कर न सके। जिस पर सन्मति से बच्चे भी,
अपना शासन है जमा सके । अब त्याग-पत्र में नप-पद से, त्रिशला सव्यंग्य बोलीं ऐसे। तब कहा नृपति ने उत्तर में
'तुम ठीक कह रही हो मुझसे ॥ मैं मी ऐसा हो सोच रहा, सम्मति को राज-तिलक कर दूं।
लूं मैं विराम अब शारित सहित, . ..तब सञ्चित अभिलाषा भर दूं।