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तीर्थकर भगवान महावीर भाव .. स्वयमाहार देने, के हुए उत्पन्न । किंतु उसके पास था वह, मात्र कोदों अन्न । पारणा लेकिन कराने का किया सु-विचार । भक्तिवश प्राहार देने, को खड़ी: तंबार ॥ पूर्ण हर्षोल्लास मुख पर, दिख रहा . सुखपूर्ण । वीर पाये इस तरफ भी, शान्ति शम-परिपूर्ण । भक्ति से पड़गा उठी वह, .सौम्य श्रद्धाभाव । विभु रुके क्षण बढ़े · फिर वह, कौन सा दुर्भाव ?
रो उठो अब चन्दना, बह कोमती निज माग्य। दे न वह आहार पाई, कौन-सा दुर्भाग्य ? वीर ने जा. दूर देखा, : घूम पीछे-पोर । रो रही वह चन्दना है, दुख रहा झकझोर ॥ शीघ्र लौटे वीर स्वामी, · पूर्ण . रुदनामाव । निन प्रतिज्ञा रूप प्रब तो, विस रहे सब भाव ॥ वीर लेने को.. समुद्यत; इसलिए माहार । बेड़ियां सब आप टूटी, पुण्य का संचार ॥ कर रहे हैं पारणा अब, बीर समता माव । दिव्य' पाश्चर्य दर्शित, यह सु-कृत सद्भाव। माज दासी हाच प्रभु ने, नो लिमा प्राहार । हो गई यो क्रान्ति जग में, दोन महिनोदार,॥ बोरवर लेकिन मए बन, सापना के हेतु । बांधने वे इस जगत से, मुक्ति तक का सेतु ॥