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नन्दना दामो कि जिसके थे मटे व के.ग । मट वृष मेन-पन्नी ने किया दुवंग ॥
बन्धनों में पड़ी दग्विया, मन मही जयकार ।
पारगा दिन-वीर. मममी पा रहे हम हार ॥ भाव स्वयमाहार देने के हा उत्पन्न । किन्तु उसके पास था वह मात्र कोदो अन्न ।।
वीर लेने को समुद्यत भक्तियुत अाहार ।
बेडियां मब पाप दी पुण्य का संचार ।। x::
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.xx प्राज दामी-हाथ प्रभ ने जो लिया ग्राहार। हो गई यों क्रांति जग में दोन म.िलोदार ॥