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तीर्थङ्कर भगवान महावीर फाडते क्यों बन्धु ! पुस्तक-क्या हुई है बात ?' 'क्या बताऊँ मित्र !' बोला, ज्योतिषी निष्णात ॥ 'ग्रन्थ है यह भ्रांत यों मैं कर रहा हूं भग्न । प्रन्थ के अनुसार तो यह व्यक्ति जो हैं नग्न ॥ चाहिए चक्रोश होना, पर नहीं यह बात । सत्य हो सकती कभी भी, यह यहाँ पर ज्ञात ॥' किंतु दर्शक ने कहा-'ठहरो तनिक मम मित्र । व्यर्थ ही मत नष्ट कर दो, ग्रन्थ के सब पत्र । नग्न भिक्षुक ये सुनों हैं, कुण्डपुर-युवराज । तुच्छ इनके सामने हैं, सब जगत का राज ॥ धर्मचको ये बनेंगे-तीर्थ के कर्तार । ये विचक्षण व्यक्ति जग में, शांति के प्रागार ॥' वृत्त सुन उसको अचंभा-सा हुमा विन माप । लौट निज पथ पर गया तब ज्योतिषी चुपचाप ॥ वोर पहुंचे एक दिन थे, घूमते उज्जैन । साधना में लीन, कहते हैं न कुछ भी बैन ॥ नाम प्रतिमुक्तक कि जिसका, शव-दहन संस्थान । योग प्रतिमा में वहां पर, थिर हुए धर ध्यान । स्वर्ग में इस ही समय पर थी चली यह बात । वीर-सा कोई न जग में, ध्यान में निष्णात ॥ सुन न पर भव रुद्र इस पर, कर सका विश्वास । वह परीक्षा हेतु आया, कर उठा बहु त्रास ॥