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तीर्थकर भगवान महावीर इस पर सन्मति कुछ कहने को, पर कहा नृपति ने कुछ पहले। तब शान्त रहे शम वद्ध मान,
वे शब्द न कोई थे बोले ॥ नप थे उनसे बोले-'तुमने, जीवन को कुछ परवाह न की। पर भला हुआ उत्पात-शमन,
बचगई जान अगणित जन की।' ऐसे समयों पर बर्द्धमान, प्रायः कुछ करते बात नहीं। वे तो शम दिखते हैं निरुपम,
उनमें उच्छहल-दृष्टि नहीं॥ पर मात-पिता का मृदुल हदय, मन फूला नहीं समाता है । कारण इसका शायद लगता,
सुत होने का शुभ नाता है। तदनन्तर थे दरबार गए, सिद्धार्थ नृपति नब सन्मति संग। तो सबने स्वागत पूर्ण किया,
मानों ले कर नूतन उमंग ॥ नियमित कार्यों के बाद बनी,
पर्चा उस केहरि घटना पर ।