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तरुण विकसित मंजु तन में, वेणु बजती भावना की । कौन हृदय खसोटता क्या? सुप्त रेखा वासना की ॥
कामना के गीत गाने को, हृदय आकुल हुआ-सा । मधुर जग में सञ्चरण हित, मन-विहग व्याकुल हुआ-सा ॥
कल्पना के सौम्य नभ में, पंख मन-खग खोलता-सा । मुक्त उड़ने को इधर कुछ, कुछ उधर वह डोलता-सा ॥
मदिर सरगम के सुरीले, तार झन-झन कर उठे-से । और 'रुन-झुन' शब्द सुनने को, मचलते भाव जैसे ॥