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तीर्थकर भगवान महावीर 'मात! अब भी मोह युत हैं, शब्द निकले प्रापके यह । मैं परिस्थितियां सभी कुछ, आपके सन्मुख चुका कह ॥
जन्म इसी प्रनादि जग में, रखे मैंने हैं अमित हो । हुये होंगे मात-पितु भी, इस तरह मेरे बहुत ही ॥
वे कहां अब, मिट गए सब, मोह किस-किस का निभाऊँ ? सार क्या संसार में अब, आपको क्या मैं बताऊँ ?
देवता भी इस मनुज के, जन्म पाने को तरसते । क्योंकि नर तन प्राप्त करके, साषु व्रत हैं पाल सकते ॥'
'पुत्र प्रिय यह बात केसी, विश्व सुन्दरि नो यशोदा । गुणवती मृदुभाषिणी वह, जो बनेगी सर्व सुखदा ॥
तब सु-परिणय हित बुलाई, वह कलिंगाषिप सहित है।