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पंचम सर्ग : तरुणाई एवं विराग ये प्रमी से ही विरागी, लग रहा है, हो रहे ज्यों ॥
है तरुण वय हुई इनकी, ब्याह करना इष्ट हमको । बाद में दुस्तर बनेगा, सच मनाना हमें इनको ॥
___ सौम्य-सा सम्बन्ध कोई,
ढूंढ़ने के हेतु कुछ जन । मेज नृपवर ने दिए हैं, जो कुशल हैं मोदयुत मन ॥
वर्तमान स्वरूपबल को, कीति से थे सभी परिचित । निज सुता सम्बन्ध हित यों, बहुत से नृप हुए उद्यत ॥
जबकि राजकुमारियों ने, बात सन्मति को सुनी तब। सहज करने लगा उनका, सरस मानस मदिर कलरव ॥
कामना के स्वप्न तो अब, आ रहे बिन प्रकृत निन्द्रा। रक्त बोवन का मबिर यह, मृदु नशीली मत्त तन्द्रा ॥