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पंचम सर्ग: तरुणाई एवं विराग इन्हीं प्रश्नों में रमा-सा, सोचता रहता यहां हूं।'
'बन रहे तुम तो अभी से, दार्शनिक-से इस जगत में । 'नहीं इतने में कहीं से, हो गया मां दार्शनिक मैं ॥'
किन्तु त्रिसला मृदुल बोली'वत्स, मेरे प्राश-दीपक ! एक चिर अभिलाष मेरी, क्या भरोगे कुल-प्रदीपक ॥'
'कब नहीं आदेश मा तव, कहो मैंने है निवाहा । मैं सदा निश्चित करूंगा, आपने यदि उचित चाहा ॥'
___ 'उचित' का बन्धन कहो क्या,
वत्स, तुमने यह लगाया । मन-उचित क्या कहूंगी, मम, तुम्हीं में सब कुछ समाया ॥
सुत-वधू औं पौत्र-पर्शन, की हवय चिर साध साये। मान आया समय बह जब, तु सफल मम वाश कर रे॥'