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तोर्यकर भगवान महावीर इन विकल्पों में यशोदा, हो रही गुम-सुम हुई-सी । इधर सन्मति महल पहुंचे, शान्ति-मुद्रा प्रशमता-सी ॥
रात का तम सघन-सा प्रब, अरत होता जा रहा है। चांद तारे हंसे नम में, समय बढ़ता जा रहा है।
बर्द्धमान स्व-कक्ष में थे, सोचते बैठे हुए थे। आ गई सम्राज्ञि त्रिसला, निरत विनयाचार में वे ॥
भक्ति से कर विनय स्वागत, उच्च आसन पर बिठाया । स्नेहयुत आशीष - वादन, मात से सुख-पूर्ण पाया ॥
प्रेम से बोली जननि मृदु"प्राय रहता सोचता-सा । तू अकेले में हुमा क्या, मनन करता साषु अंसा ॥'
'कुछ नहीं बब-सब कभी मैं, लोक क्या है? स्वयं क्या हूं?