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तीर्थकर भगवान महावीर वे बोली-बेटे कहाँ गए, मैं तो तुमको थी देख रही। गज मदोत्पात कर रहा यहाँ,
सुन कर तब से कुछ सोच रहो। आशा में मन सूबा था, पर शकुन हो रहे पल प्रतिः पल । इसलिए हदय कुछ सन्तोषित,
पर बाट जोहता तब अविरल ॥ 'पर मां तब शकुन ठीक निकले, मुझको कुछ ऐसा लगता है। मैंने गज वश कर बन्द किया,
अब तो उत्पात न करता है।' 'ऐं क्या कहते ? 'तुमने अच्छा, तुम मला शान्त कब रह सकते? ऐसे कामों को तो तुम हो, .
बिन सोचे समझे ही करते ॥' 'लेकिन मां जो तुम सोचो तो, करि कर भीषण संहार रहा। यदि किया न बाता वह वश तो,
कैसे टलती यह विपति महा ।' इतने में आए श्री नृपवर,
मत सन्मति ने सहज किया।