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चतुर्थ सर्ग : किशोर वय उत्पात जहाँ यह गज करता,
पहुचे उस थल निर्भय नितान्त ।। रोका सबने श्री सन्मति को, पर वे न रुके साहसी अतुल । वे अभयदान नागर जन को,
देने को मन में थे प्राकुल ॥ वे सिंह सदृश केहरि-सम्मुख, जा खड़े हुए भय भाव-रहित । मदमाता हाथी सूड उठा,
झपटा इन पर प्रति वेग-सहित ॥ पर वीर सूड से चढ़े शीघ्र, उसके मव-विगलित मस्तक पर । गज सहम गया मद भूल गया,
पा शासन सन्मति का शिर पर ।। दर्शक थे सब आश्चर्य चकित, इस पौष साहस से विस्मित । कर उठे प्रशंसा भूरि-भूरि,
गज पर बैठ सन्मति सस्मित ॥ पहुंचाया गज को यथास्थान, सन्मति फिर लोटे महलों में। मां निकट खड़े वे विनयवान,
मा हई मुदित निज अन्तस में ।