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....."पर महावीर ने जाना जब, इम उन्मद हाथी का वृतान्त । उत्यात जहां यह गज करता, पहेचे उस थल निर्भय नितान्त ।। xxx
xxxxxx वे मिह सदृश केहरि सम्मुख, जा खड़े हुए भय-भाव-रहित । मदमाता हाथी सूड उठा, झपटा इन पर प्रति वेग-सहित ।। पर वोर मूह से चड़े शीघ्र, उसके मद विगलित मस्तक पर । गज सहम गया मद भूल गया, पा शासन सन्मति का सिर पर ।।