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चतुर्थ सर्ग : किशोर वय तब सङ्गम सुर झट बन पाया,
अति भयकारी काला भुजङ्ग। वह वृक्ष-तने पर लिपट गया, कुछ भाग रहा उसका भू पर। विष की विषाक्त-सी फुफकारें,
अब मार रहा था वह विषधर ॥ जैसे ही बच्चों ने देखा, वे नौ-दो-ग्यारह शीघ्र हुए । मुह उठा उसी दिशि में भागे,
वे महा भीत निर्वाक हुए ॥. पर बर्द्धमान वे बाल वीर, किञ्चित न डरे उससे दृढ़तर । पहुंचे तत्काल फणीश निकट,
जा खड़े हुए उसके फण पर । उसके फण पर खेलते रहे, थे बहुत देर वे प्रति निर्भय । था रचता क्रीड़ा रहा वहीं,
फणधर मी मग्न हुआ अतिशय ॥ बच्चों ने राज-भवन में जा; विषधर वृतान्त सब बतलाया । उद्विग्न हुए अति नप-त्रिशला,
जब साथ न सन्मति को पाया ।।