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तीर्थकर भगवान महावीर सम्राज्ञी बोली-'देवराज !
यह खेल तुम्हारे लिए रहा। ___ यदि हो जाता कुछ सन्मति को,
तो जाता कंसे दुःख सहा ॥ सचमुच जीवन तब मुश्किल था, हम तो सुत भर ही जीते हैं। . इनके बिन तो सब काम धाम,
लगते हमको प्रति रोते हैं।' सुर बोला-'मा जी! पद्धमान, होते इतने यदि बीर नहीं।
तो सुनो परीक्षा की नौबत,
___ आ सकती थी किञ्चित न कहीं॥ फिर भी मैं क्षमा मांगता हूं, श्रीमती मापसे भूपति से। पर वर्तमान होंगे प्रसिद्ध,
सच 'महावीर' मग में अब से ॥ इतना कह कर सुर सङ्गम ने, ली विदा उपस्थित सब जन से। कर नमस्कार वह चला गया,
निज स्वर्गलोकको भू-तल से । यह घटना कई दिवस तक बी,
बन गई विषयं जनचर्चा का