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तार्थङ्कर भगवान महावीर नप ने फिर पूछा - देवराज ! क्यों शौर्य परीक्षा की ठानी ।' तब उत्तर में वह बोला यों,
जाज्वल्यमान स्वगिम प्राणी॥ 'जब स्वर्गलोक में बात चली, सन्मति सम जग में शौर्य नहीं । तब मैं विश्वास न कर पाया,
ली अतः परीक्षा जटिल यहीं ॥ यह सन्मति केवल वीर नहीं, ये तो सच अतिशय धीर वीर। मैं तो कुछ सोच समझ इनका,
हूं नाम रख रहा 'महावीर'। यह यथा नाम है तथा गुणः, इसमें कोई अत्युक्ति नहीं।' सबके अन्तस में यही बात,
है सत्य बनी प्रब गूंज रहीं ॥ नप ने शावासी दी सुत को,
अति हर्ष समाया सबके मन । ___ बोले नप-शीघ्र चलें घर माँ,
इनकी इन विन होंगी उन्मन ॥ सुर ने सन्मति को पुनः उठा,
अपने कन्धों पर बिठलाया ॥