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चतुर्थ सर्ग : किशोर वय सबके फिर साय चला पुर को,
हर्षातिरेक-सा हो आया ॥ जा पहुंचे सब प्रासाद निकट, मां त्रिशला खड़ी द्वार पर थीं। सखियों संग बाट जोहती बे,
सुत-मिलन हेतु अति आतुर थीं। जब देखा सुर के कन्धों पर, बालक सन्मति को चढ़े हुए। तो वे प्रमुदित लेकिन विस्मित,
दुर्भाव तिरोहित शीघ्र हुए ॥ वे भूली-सी देखने लगी, सन्मति को निनिमेष हग से। पर वर्द्धमान झट देख उन्हें,
उतरे सङ्गम के कन्धों से ॥ आ पहंचे वे मां के समीप, शुचि प्रेम-पगा सम्बाद किया। मां ने दुलार से आशिष दे,
सुत स्नेह-अङ्क में उठा लिया। नप, राज्ञी,सखियां, सुर, सन्मति, फिर अन्दर गए महल प्रशान्त । इतने में नप ने बतलाया,
सब देव-परीक्षा का वृतान्त ॥