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चतुर्थ सर्ग : किशोर वय वे चले वैद्य कुछ जन ले कर,
वन को, चर भेजे इधर-उधर ॥ लेकिन अन्तःपुर में त्रिशला, माता को धैर्य न कियत हुआ। वे क्षण-क्षण पर हैं सोच रही,
जाने क्या होगा वहाँ हुआ। दासियां निरत परिचर्या में, सखियां मृदु उनसे बोल रहीं। सब विधि से ढाढस दे उनको,
हैं ध्यान बटा हर समय रहीं ॥ मां त्रिशला कहती हैं उनसे,
जब भी-'अब जाने क्या होगा ?" __तो कहतीं उनसे हैं सखियाँ,
'उनका न बाल बाँका होगा ॥ कारण सन्मति है भाग्यवान, उनको होगी अति दीर्घ आयु ।' यह सुन मां जी को भी ऐसा,
लगता पाती ज्यों धैर्य-वायु॥ लेकिन संकल्प-विकल्पों के, झूलों पर हैं वे झूल रहीं । वे धैर्यवान हो कर भी हैं,
चिन्तित-सी सब कुछ भूल रहीं।