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तोर्थङ्कर भगवान महावीर जब मुन्ना आ जाता है, तो मानों मां त्रिशला के। साक्षात रूप प्रा जाते, उनके मानस-प्राणों के ॥
वे टुक निहाल हो जातो, मुन्ने को गोद गोद उठा कर । मुन्ना मी मातृ-अङ्क में,
हंसता है हषित हो कर ॥ जब कभी कभी मां त्रिशला, दर्पण ले चोटी करतीं । तो वे अपने सुत को तब, कुछ उलझा उसमें पातीं ॥
वे निज प्रतिबिम्ब देखकर, मन में अति प्रमुदित होते। उसको छूने को सहसा,
हैं वे निज हाथ बढ़ाते ॥ इस पर माँ और उपस्थित, जन अट्टाहास-सा करते । शिशु भी अपनी मस्ती में, खिलखिला खूब हैं हंसते ॥
बचपन की कंसी मस्ती, कोई छल-छन्द नहीं है।