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तीर्थङ्कर भगवान महावीर
इस पर शिशु वर्द्धमान कुछ, उठकर निज शिरस्त्राण ले। फिर कहते हैं वे उससे,
'क्यों व्यर्थ झूठ थे बोले ? उनकी यह सजग सुचेष्ठा, लख नृपवर कुछ यों कहते । 'निज वत्स कुशलतम शासक, होगा यह लक्षण दिखते॥'
शिशु वर्द्धमान के कारण, हर्षतिरेक-सा रहता ॥ त्रिशला-गृह के प्रांगन में,
ज्यों चांद खेलता फिरता ॥ उनको कुछ बाल सुलभ-सी, चेष्टाए मनहर होती। जिनमें कुशाग्र मति उनकी, है नया रङ्ग भर देती ॥
न्यों कजरारे सावन के, प्रति सघन मेघ-प्रसरण में। धुति चमक-दमक कर जैसे,
भर देती आभा उसमें ॥ मथवा पावस सन्ध्या में, कुछ हल्के बादल-तट पर ।