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तृतोय सर्ग : शिशु वय जैसे गम्भीर भाव से, करते कोई चिन्तन हों।
शिशु वय में महा दार्शनिक, जैसे योगी ही लगते । उन्नत ललाट पर उनके,
कुछ रेखा-चिह्न झलकते ॥ इस दिव्य भाल पर उनके है लगा दिया चुपके से। मां श्री ने काजल तिरछा, लग जाए 'नजर' न जिससे ॥
यह कज्जल-बिन्दु सोहता, उनके मुख पर है ऐसे । शुभ उमिल जल में हंसता,
मृदु नील कमल हैं जैसे ॥ वे धीरे-धीरे बढ़ कर, अब उठने स्वयम् लगे हैं । पर डगमग-डगमग हिलते, वे स्वयम् खड़े होते हैं।
उठ कर नन्हें हाथों से, वे ताली खूब बजाते । खिलखिला हास वे करके, सबको निहाल कर देते ॥