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तृतीय सर्ग : शिशु वय __ दरवारी शिशु-दर्शन कर,
चिर माशा सफल बनाते ॥ शिशु वर्द्धमान छोटे हैं, पर शिष्टाचार उन्हें है । मां त्रिशला की शिक्षा से, सम्भाषण-ज्ञान उन्हें है ॥
समुचित सम्भाषण करते, सुत को जब नृप पाते हैं । तो मन हो मन वे सचमुच,
अति तोष-हर्ष करते हैं ॥ शिशु बर्द्धमान भोले-से, इकटक प्रति वस्तु देखते। उनमें जिज्ञासा रहती, ऐसा सब अनुभव करते॥
है उन्हें कभी कोई भी, ले जाता पुर-मार्गों से । तो उनका मनमोहक मुख,
सब लखते उत्कण्ठा से ॥ महिलाएं शीघ्र झरोखों, छज्जों द्वारों पर प्रातीं। लख सस्मित शिशु को वे सब, निज जीवन सफल बनाती ।।