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द्वितीय सर्गः जन्म-महोत्सव वे दुर्जीव समय पाकर ही,
हैं लूले लँगड़े होते ॥ उत्तर सुन-सुन सब कुमारियाँ,
हैं आश्चर्य-चकित होती। लेकिन मन की जिज्ञासा कों,
पूर्ण शान्त वे हैं करतीं। रानी उत्तर देती या ज्यों,
स्वयम् बुद्धि साकार हुई। उत्तर दे जाती चुपके से,
क्या विचित्र यह बात हुई ! या मेधावी वत्स गर्भ में,
अतः बुद्धि अति प्रखर हुई । चाहे कुछ भी हो कारण,
पर माँ श्री की मति दिव्य हुई। ऐसे ज्यों-ज्यों दिवस बीतते,
सुख-आह्लाद - बृद्धि होती । जीवन की इस सुन्दर गति में,
अति प्रसन्नता है होती॥ वत्स-जन्म का समय आ गया,
पर कष्टों का नाम न है। सब में हर्ष समाया जाता,
दुख - विषाद का काम न है ॥