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तीर्थङ्कर भगवान महावीर वह भी तो मधुकर-गुञ्जन मिस
जन्म बधाए गाती है। ढोलित पात सरर-सर निर्भर,
नद-स्वर तान सुनाती है । और उधर अब राज-भवन में,
जहाँ कि माँ त्रिशला रहती । अगणित सखियाँ परिचर्या में,
उनकी सदा लगी रहती ॥ मन-हर सुत को मैं ले पाऊ',
तनिक खिला पाऊँ उसको। सब प्रयत्न ऐसा करती हैं,
हर्षित करती मां श्री को ॥ मां त्रिशला भी गोद लिए शिशु,
अमित मोद मन में भरतों। तन-मन भोले सस्मित शिश पर,
निशिदिन न्योछावर करती।
वत्स की मां ले रही हैं।
मृदु बलयां बार-बार। पन्य उनका मातृ-पद है।
सौम्य-सा शिशु होनहार ॥