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तृतीय सर्ग : शिशु वय
फिर भला नहीं रवि तो क्या,
कोई हमसे तो पूछ ।' जी नहीं, एक उपमा तो, मन उमड़ रही मेरे है। मुन्ना शरीर- सरवर में, मृदु-मुख अरबिन्द खिला है ।।
यह प्रफुलित पूर्ण कमल-सा, जो अरुण सुरभि मय जैसे। युग श्रवण पात-से लगते,
तम केश भङ्ग-माला - से। इस पर कोई सखि इठला, इठलाकर कुछ यों बोली । "है नवल कमल से कोमल, तो इनके कर-पम-तल हो।
मुख तो अरुणोदय लगता, कुछ छटा अरुण सी रखता। जिसको लख अपने उर का,
मोलित-इन्दीवर खिलतर । इतने में बोली मो श्री, कुछ मन ही मन मुस्कातीं। 'जब है उपमेय हृदयहर, उपमाएँ अपणित माती ।