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तीर्थङ्कर भगवान महावीर झालर-मय मणियों वाले, लेटते पालने में थे। घोरे-धीरे से झके, पा कर झट सो जाते वे ॥
जब सोते हैं तब उनकी, मुख-मुद्रा को सब लखते । उनके प्रजों की उपमा,
ललितोपमान से करते। कोई कहता. 'देखो तो, अब रूप शयन करता है।' उसके ऊपर भी तो अब, मृदु हास हास हंसता है ।
मुख-मण्डल तो बिल्कुल ही, शशि की समता है रखता। भी पलक श्याम दर्शाती,
मुख-चन्द्र बीच श्यामलता। 'पर अरुण अधर से मुख तो' झट बोली एक सहेली। 'लगता है बाल भानु-सा, दू समझ न इसे पहेली।
हैं जिसकी धवल ज्योति से, तम केश भामते पीछे ।