________________
तृतोय सर्गः शिशु वय मैं क्या जानं कि कौन-सा, जादू श्रीमन् हैं करते ?
क्या आप मातृपद मेरा, हैं सहज चाहते लेना ? पर व्यर्थ आपका यह सब,
मेरा मुन्ना है अपना ॥ वह जब कि जागता है तब, खेला करता है मुझसे । तब स्वयम् आप आ जाते, 'पा-आ' सुनने को जैसे ॥
सन्निकट प्रापके रहता, व्यंग्यों का भरा पिटारा। पर मुझे न झेपा सकता,
वह स्वयम् निपट वेचारा ॥' रानी उत्तर सुन नृप का, फिर भला प्रश्न यह होता। 'तब कौन व्यक्ति सोते में, मुन्ने को कहो हंसाता ?'
'क्यों प्राप बन रहे मोले, ज्ञानी हो कर भी कहते। सोते में कौन खिलाता, मुन्ने को हंसते-हंसते ?