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तीर्थङ्कर भगवान महावीर
मैं तो इतना कह सकतीं, नन्हा-सा मुन्ना अपना । उसके मिस ज्यों हम सबको,
साकार हुआ सुख-सपना ॥ ऐसे सुख-चर्चा-क्रम में, सम्राट स्वयं आ जाते । वे भी शामिल हो प्रमुदित, हैं स्वाद अनोखा पाते ॥
सोते ही वर्द्धमान शिश, हैं तनिक मुस्करा देते । तो व्यंग्य-सहित रानी से,
कुछ कहते नृप मुस्काते॥ 'है सहज विमाता देखो, यह खिला रही तब सुत अब । तुम खिला नहीं पाते हो, क्या पुत्र नहीं है यह तव ?
अथवा रूठा है तुमसे, वह मुदित खेलता उससे । क्या बात हुई है ऐसी,
जो नहीं खेलता तुमसे ॥' 'जैसे कि आप पाए हैं, वैसे ये लक्षण होते।