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द्वितीय सर्गः जन्म-महोत्सव गए स्वर्ग को देव सभी फिर,
___ मोद भरा मन में उनके ॥ और इधर भी निखिल नगर में,
जन्मोत्सव की धूम हुई। केवल राज-भवन में ही क्या,
घर घर में सुख-सृष्टि हुई ॥ जन्म बधाई गीत गा रहीं,
___घर-घर महिलाएं मिलकर । ढोलक बजती जाती होते,
साथ मजीरों के मृदु स्वर ॥ राज-भवन में आज हर्ष का,
छोर नहीं है कुछ दिखता । राजकीय बाजे बजते हैं.
मधुरिम नृत्य गान होता ।। केशरिया ध्वज फहर-फहर कर,
लहर रहे छत के ऊपर । तोरण बंदनवार बॅध रहे,
राज-महल के द्वारों पर ।। उधर नाटय शालाओं में भी,
नाटक हैं खेले जाते। चार चांद उत्सव शोभा में,
सुभग लगाये हैं माते ।