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तीर्थङ्कर भगवान महावीर नृत्य गान वादित्रों की लय,
लहर रही जल लहरों-सी। उत्सव का प्राह्लाद समाया,
देवों की सुस्थिति ऐसी ॥ ले आया सौधर्म इन्द्र फिर,
वत्स निकट मां त्रिशला के । पूर्ण देव-कृत, जान न पाए,
माता-पिता कुछ जन घर के ॥ मायावी पुतले को तब फिर,
इन्द्र-शची ने नष्ट किया । उसकी जगह शीघ्र त्रिशला-सुत,
को स्वाभाविक लिटा दिया। सम्राज्ञी मां त्रिशला की अब,
निद्रा का भी अन्त हुप्रा । और तभी ही कुछ सुयोग से,
नृपवर का आगमन हुआ ॥ देवों ने तब मात पिता का,
मङ्गलमय यश गान किया ॥ तीर्थकर सुत के होने का,
यों शुभकर सन्देश दिया। दे कर के फिर हर्ष बधाई,
कर के शत वन्दन शिशु के ।