________________
३८
तीर्थङ्कर भगवान महावीर लो, इस शुभ दिन, शुभ वेला में,
त्रिशला-सुत' का जन्म हुआ। तीन लोक में मङ्गल छाया,
पुण्य-पुञ्ज अवतरित हुप्रा ॥ कहते नर्क-लोक में भी तो,
प्रगट हुई क्षण-भर साता। भूतल की क्या, देवलोक में,
जन्म महोत्सव था होता ॥ उधर बज उठी भुवन-वासियों,
देवों की सुन्दर भेरी । व्यन्तर देव - मृदङ्गों को भी,
हई न बजने में देरी ॥ घनन घनन घन, घनन घनन घन,
टनन टनन टन, टन टन टन । कल्पवासियों के घण्टे भी,
बाज उठे थे यों क्षण क्षण ॥ छन छन छन छन, छनन छनन छन,
नाच उठीं कुछ अप्सरियाँ । उनकी रुन-झुन नूपुर ध्वनि सुन,
गान गा उठी किन्नरियां ॥ सारा नभ प्रतिध्वनित हो उठा,
जय - जय मङ्गल नादों से ।