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तोर्थङ्कर भगवान महावीर केवल अति सुख राज-भवन में,
हो,-ऐसी ही बात नहीं। निखिल नगर सम्पन्न हो रहा,
दिखता है यह सभी कहीं ॥ शुभ प्रभात मध्याह्न समय में,
__ ऐसा लगता है जानो । रत्न-राशि बरसाया करता,
__ है कुबेर ही सच मानो ॥ अब पुर में समृद्धि थिरकती,
कोई दीन न दिखता है । सब ही हैं सम्पन्न हुए ज्यों,
कोई क्ष धित न मरता है। यों समृद्धि-प्रसार सहित ही,
समय मन्द - सा थिरक रहा। 'चैत्र शुक्ल तेरस' के दिन का,
शुभकर हो आगमन रहा ॥ विमल रुपहली चन्द्रकला भी,
क्या हँस कर 'शशि' से कहती। 'प्रियतम ! तुमसे सुभग चन्द्र यह,
पाने वाली है धरती ॥ 'हाँ प्रिय ! ठीक-ठीक कहती तुम,
यह अपना सुभाग्य होगा।'