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प्रथम सर्ग पूर्वाभास कारण सुभाग्य से नृप निमित्त ज्ञानी हैं।
है तीव्र बुद्धि उनको वे विज्ञानी हैं। सम्राट और सम्राज्ञी कुछ मुस्काए । फिर सम्राज्ञी ने अपने स्वप्न सुनाए ।
वे बोलीं 'देखा सर्व प्रथम गज मैने ।'
नृप लगे सोच कर उत्तर को यों कहने ।। 'इसका आशय तुम भाग्यवान सुत की मां। होओगी जग में फैलेगी तब गरिमा ॥'
सम्राज्ञी त्रिशला ने आगे बतलाया ।
'देखा वृष जिसको हृष्ट-पुष्ट सित काया ।' 'होगा तव सुत वह धर्मसुरथ का चालक।' यों सोच समझ बोले वे जनता-पालक ।
रानी बोली, "फिर आया स्वप्न सिंह का।'
होगा अनन्त बल पौरुष तव उस सुत का ॥ 'इससे अगला है स्वप्न सुभग लक्ष्मी का।' 'स्वामी होगा वह सुथिर मोक्ष लक्ष्मी का॥'
यों बतलाया नप ने रानी स्वप्नोत्तर ।
सब दिखते थे मन मुदित हुए तदनन्तर ।। 'मैने देखी सुरभित फूलों की माला ।' इस भांति कहा रानी ने स्वप्न निराला॥
नप उत्तर में बोले 'उस सुभग पुत्र का। जग में फेलेगा अविरल सौरभ यश का॥'