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तीर्थकर भगवान महावीर पद-दलित शांति सुख के प्यासे दिखते हैं । पर कौन बुझाये प्यास दोन मरते हैं।
यह धन्य भाग्य जो धरती पर आयेगे।
भावी कुमार निज जो दुख दूर करेंगे। ऐसा ही तो स्वप्नाथों से भासा है । यह हो तो अपनी चिर-सञ्चित आशा है।' दरबार विसर्जित हुआ किंतु,
आरम्भ हुई नव अभिलाषा। नूतन कुमार मुख-दर्शन को,
जागी सब ही में जिज्ञासा ॥